लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना जारी है। एनडीए और इंडिय. गठबंधन के बीच मुकाबला रोचक होता जा रहा है। हालांकि उत्तराखंड की पाचों सीटों पर भाजपा ने जबरदस्त जीत दर्ज की है। उत्तराखंड की सबसे हॉट गढ़वाल लोकसभा सीट पर बीजेपी का कमल खिल गया है।
पौड़ी लोकसभा सीट पर बीजेपी कैंडिडेट अनिल बलूनी चुनाव जीत गए हैं। बलूनी ने कांग्रेस के गणेश गोदियाल को 1 लाख 55 हजार 839 वोटों के अंतर से हराया। बलूनी को कुल 4 लाख 18 हजार 531 वोट मिले जबकि गोदियाल को 262692 वोट मिले। तीसरे स्थान पर नोटा रहा। गढ़वाल लोकसभा से करीब 11 हजार से ज्यादा वोट नोटा को पड़े
जनता के बीच जाकर बलूनी का ये पहला चुनाव है जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की है। इससे पहले 2005 के कोटद्वार विधानसभा उपचुनाव में उन्हें हार मिली थी।
बलूनी ने ऐसे पलटा पासा
गढ़वाल लोकसभा सीट बलूनी के लिए कडी चुनौती मानी जा रही थी। गणेश गोदियाल के आक्रामक प्रचार और अपार समर्थन से कांग्रेस को यकीन था कि यहा वो जीत दर्ज कर सकती है। लेकिन बलूनी ने पार्टी के संगठन और अपनी रणनीति का बखूबी इस्तेमाल करते हुए विजय हासिल की।
शांत रहकर दिखाया दम
गणेश गोदियाल ने जहां सोशल मीडिया से लेकर जनसभाओं में आक्रामक रुख अपनाए रखा, वहीं बलूनी शांत रहकर काम करते रहे। बलूनी ने उन पर लग रहे आरोपों का शांत रहकर जवाब दिया।
मोदी शाह के करीबी
पीएम मोदी और अमित शाह के करीबी होने का बलूनी को बखूबी फायदा मिला। 2014 में बलूनी को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया। इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसमें उन्होंने अभूतपूर्व काम किया। अपनी रैलियों में बलूनी मोदी का चेहरा सामने रखते थे, जिस पर जनता ने अपना जनादेश लुटाया। जनता को लगा कि बलूनी को सांसद बनाया जाए तो गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र को मोदी शाह से करीबी का फायदा जरूर मिलेगा।
राज्यसभा सांसद का काम आया काम
बलूनी 6 साल राज्यसभा सांसद रहे। इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड के तकरीबन हर हिस्से में अपनी सक्रियता दिखाई। सांसद निधि से लेकर पौडी में तारामंडल जैसा बडा प्रोजेक्ट लाना, दुर्गम क्षेत्रों के अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करना, रेल कनेक्टिविटी और मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए विशेष प्रयास करना बलूनी के ऐसे काम रहे जिन्हों उन्होंने जनता के बीच गिनाया और जनता ने इन पर भरोसा करके अपना वोट दिया।
इलेक्शन मैनेजमेंट
गणेश गोदियाल जहां खुद के भरोसे चुनावी मैदान में थे, वहीं भाजपा की पूरी मशीनरी गंभीर होकरचुनाव लड़ रही थी। बलूनी खुद भी बेहतर संगठनकर्ता रहे हैं। इसलिए संगठन को जोड़कर औऱ वोटरो को पोलिंग बूथ तक खींचकर लाने में इस रणनीति ने बड़ी भूमिका निभाई।
इमोशनल टच
अनिल बलूनी को चुनाव में इमोशनल अपील का भी फायदा हुआ। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से उबरकर चुनावी मैदान में उतरे बलूनी पर लोगों का विश्वास बढ़ता गया। गांव में इगास मनाने की बात हो या अपना वोट अपने गांव का कैंपेन हो, इसके जरिए बलूनी ने कांग्रेस को उस नैरेटिव को नकार दिया जिसमें उन्हें दिल्ली वाला बताया गया था।