क्या आप सोच सकते है कि सन 1907 यानि आज से 113 साल पहले पहाड़ो की रानी कही जाने वाली मसूरी में बल्ब जगमगाने लग गए थे ,जी हाँ ये सच है कि जब दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों में घरों को रोशन करने के लिए लोग लालटेन और मशाल का उपयोग करते थे तब पहाड़ो की मसूरी के कई इलाकों में बिजली आ गयी थी
साल 1890 में गैलोगी जल-विद्युत परियोजना पर काम शुरू हुआ था। मसूरी-देहरादून मार्ग पर भट्टा गांव से तकरीबन तीन किमी दूर है। 1907 में बनकर तैयार हुई 3.5 मैगावाट की गैलोगी जल-विद्युत परियोजना जिससे मसूरी में बिजली आई थी. ये परियोजना की कुल लागत लगभग7.50 लाख रुपये थी जिस समय देश आजादी के जंग लड़ रहा था उस समय अंग्रेजों ने मसूरी में बिजली लाने के लिए गैलरी पावर हाउस बना डाला था इस पावर हाउस में आज भी इंग्लैंड में बनी मेनचेस्टर और स्वीडन की बनी मशीनें काम कर रही है और लगातार बिजली उत्पादन हो रहा है
इंग्लैंड से पानी के जहाजों के जरिये मुंबई पहुंची भारी मशीन और टरबाइनों को रेल से ही देहरादून पहुंचाया गया उस समय बैलगाड़ी और मजदूरों के कंधों पर इन मशीनों को पहाड़ी पर मौजूद परियोजना स्थल तक पहुंचाया गया। मसूरी नगरपालिका के तत्कालीन बिजली इंजीनियर कर्नल बेल की देखरेख में करीब 600 से ज्यादा लोगों ने इस परियोजना में काम किया था.क्यारकुली धारा और भट्टा नदी पर ये पॉवर हाउस बना है 16 इंची पाइप लाइनों के जरिये इस पानी पॉवर में लाया जाता है .
दरअसल अंग्रेजों ने अपने लिए इस पॉवर हाउस को बनाया था लेकिन आजादी के बाद से अबतक इसको आम लोगों के लिए उपयोग में लाया गया। वही उस समय में देश में मैसूर, दार्जिलिंग और चंबा (हिमाचल प्रदेश) में जल विधुत परियोजना थी लेकिन लगभग 113 सालों से गैलोगी पॉवर हाउस लगातार बिजली उत्पादन कर रहा है सन 1907 से मसूरी जगमगा रहा । उत्तराखंड बनाने के बाद उत्तराखंड जलविद्युत निगम के अंडर गैलोगी परियोजना है । सबसे बड़ी बात यह है कि आज 113 साल पुरानी जल विद्युत परियोजना अपने तय लक्ष्य से ज्यादा बिजली उत्पादन कर रही है यूजेबीएन के एमडी संदीप सिंघल कहते हैं कि आज भी यह परियोजना बहुत ही शानदार तरीके से काम कर रही है