उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों हलचल बढ़ गई हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर भाजपा संगठन और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह तक में हरीश रावत की उत्तराखंड एंट्री का असर दिख रहा है। हरीश रावत पेट्रोल,डीजल की बढ़ी कीमतों, खराब स्वास्थ्य सुविधाओं, युवाओं के रोजगार और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास जैसे मामलों पर लोगों से सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से संवाद कर रहे हैं। सब जानते हैं कि राज्य 2022 में विधानसभा चुनाव की दहलीज पर है । ऐसे समय में हरीश रावत का उत्तराखंड में जनहित के मुद्दों पर आवाज उठाना उनकी कुछ अधूरी रह गयी इच्छा को जाहिर करता है।
दरअसल हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता संभाल चुके हैं लेकिन अधूरे बहुमत ने बेहद कम समय के लिए मिली कुर्सी पर भी उन्हें ना तो ठीक से निर्णय लेने दिया, ना ही चैन से सत्ता सुख का उन्हें आनंद मिला। शायद इसीलिए अब एक बार फिर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने की यह उनकी आखिरी कोशिश है।
कुछ दिनों पहले हरीश रावत ने ट्वीट करते हुए खुद के सन्यास की तरफ इशारा किया है,लेकिन सच्चाई यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव तक हरीश रावत सन्यास जैसी बातों को सोच भी नहीं सकते, हरीश रावत का यह मुख्यमंत्री बनने का आखिरी दांव होगा
हालांकि इस पर सफलता का आकलन करना अभी बेहद मुश्किल है लेकिन इतना तय है कि हरीश रावत की सड़कों पर धमाकेदार एंट्री ने सत्ता धारियों से लेकर विरोधी कांग्रेसियों तक की नींद हराम कर दी है। यह बात भी नहीं भूली जानी चाहिए कि साल 2002 में वह हरीश रावत की यात्राएं और दमखम ही था कि कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में कामयाब हो गई थी।
जानकार कहते हैं कि हरीश रावत दांव तो खेल रहे हैं और उनके नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता तक भी पहुंच सकती हैं। लेकिन इसके बावजूद भी उनका मुख्यमंत्री पद तक पहुंचना इतना आसान नहीं होगा, हालांकि यह बात भी ठीक है कि विधानसभा तक पहुंचने वाले अधिकतर विधायक अब तक हरीश खेमे के ही रहे हैं। लेकिन सीएम की कुर्सी देना हमेशा की तरह हाईकमान के ही हाथ में है। यहां फिर यह बात गौर करने वाली है कि इस बार राहुल गांधी खेमा हरदा के ही पक्ष में हैं ,लेकिन फिर भी हरीश रावत के कुर्सी तक पहुंचने में कई रोड़े दिखाई देते हैं।