उत्तराखंड में बढ़ती गर्मी से पानी की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। हालात ऐसे हैं कि मैदान तो छोड़िए पहाड़ों में भी लोग पीने के पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। प्रदेश के कई शहरों में पेयजल का भारी संकट गहराया हुआ है। राजधानी देहरादून से लेकर पहाड़ों में नदियां भी सूखने लगी हैं। जंगलों में लगी आग के चलते प्राकृतिक स्रोत सूखने की वजह से साल भर पानी से लबालब रहने वाली नदियां अब सूखने की कगार पर है।
उत्तराखंड में पेयजल संकट को लेकर जल निगम के अधिकारियों का कहना है कि गर्मियों में नेचुरल वाटर सोर्स सूख जाने के चलते नदियों में पानी की कमी हो जाती है जिसके चलते पेयजल की उपलब्धता बहुत कम हो जाती है। लेकिन जल निगम विभाग के द्वारा जिन स्थानों पर पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है वहां टैंकर के जरिए पानी बांटने की कोशिश की जा रही है। जल निगम के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में कई जिलों में वाटर डैम बनाए जा रहे हैं जिनसे भविष्य में पानी की किल्लत दूर हो सकती है।
उत्तराखंड के शहरों में और राजधानी देहरादून में पानी की किल्लत का डाटा
राजधानी देहरादून 100 नगर निगम वार्ड में बांटा गया है, राजधानी देहरादून में 279 MLD पानी की आवश्यकता है, लेकिन 224 MLD पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है, 20% पानी लीकेज की वजह से बर्बाद हो रहा है ।
उत्तराखंड में पेयजल को लेकर सबसे खराब स्थिति चमोली रुद्रप्रयाग अल्मोड़ा पौड़ी हल्द्वानी रामनगर रानीखेत डीडीहाट बागेश्वर क्षेत्रों की है।
पेयजल मानकों के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर से कम पानी सप्लाई नहीं होना चाहिए, लेकिन उत्तराखंड के सिर्फ 17 ही ऐसे शहर हैं जहां पानी 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से मिल रहा है।
पेयजल का सबसे संकट पूर्ण स्थिति अगस्त्यमुनी, तिलवाड़ा, ऊखीमठ, श्री केदारनाथ, नानकमत्ता, रुद्रपुर, जसपुर, बेरीनाग, गंगोलीहाट, गजा, लंबगांव, ढालवाला, मंगलौर, शिवालिकनगर, पिरान कलियर, भगवानपुर, पौड़ी, गंगोत्री, नौगांव, चिन्यालीसौड, पुरोला, बड़कोट जैसे क्षेत्रों में है।